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क्योंकि नहीं लिखा है…

अक्टूबर 16, 2008

आज लिखने की वजह क्या है?? कुछ खास नहीं… बस बहुत दिनों से कुछ लिखा नहीं, इसलिए लिखने बैठ गया। किसी एक महान लेखक की व्यथा पढ़ रहा था। याद नहीं कौन.. पर उनका कहना था कि वो नियमित रूप से रोज़ सुबह अपनी टेबल पर बैठ जाया करते थे। मन में कोई विचार हो, या फिर नहीं। कभी कभी तो एक पन्ना भी लिखना उनके लिए दूभर था, पर कभी कभी उसी रौ में वो शाम तक लिखते रहते थे, और कई उपन्यास छाप दिया करते थे।

तो हमने भी सोचा कि ऐसा न हो.. कि लिखने की आदत छूट जाए। इसलिए लिखने बैठ गए।

अब परेशानी ये है कि क्या लिखा जाए… ये तो दस लाख का सवाल है (A Million Dollar question का हिंदी रूपांतर।) चलिए, अपनी बाई को गाली देते हैं। वैसे भी उन्होंने काम ही ऐसा किया है।

ये बताने के बावजूद की मैं दिन में एक बार ही खाना खा पाता हूं… इतना वाहियात खाना बनाने के पीछे का तर्क समझ में नहीं आया। एक दाल-नुमा कोई चीज़ बनाई, जो न तो दाल थी, न ही सब्जी। ऐसा लग रहा था कि पानी को तड़का दे दिया गया है। वो भी ढ़ेर सारे अदरक वाला। दिमाग की बत्ती जलने से पहले ही फ्यूज़ हो गई। इतना गुस्सा आया कि मन किया कि कल से ही बाहर का रास्ता दिखा दूं। पर क्या करें, माता-पिता आने वाले हैं, और फिर श्रीमती जी भी वापस आने वाली हैं। तो इस समय बाई को निकाल बाहर करना ठीक नहीं है।

पर सवाल ये नहीं है। सवाल ये है कि महिलाओं को कोई भी बात सीधे तरीके से समझ में क्यों नहीं आती? ये पहली बार नहीं हुआ, कि मैंने उन्हें समझाया हो, और उन्हें समझ में नहीं आया। अरे कोई चीज़ घर में खत्म हो गई है, तो कब बताओगे सामने वाले को? खत्म होने के बाद, या उससे पहले, कि भाई ये फलां दिन खत्म हो जाएगा, उससे पहले ला दो.. पर नहीं, यहां तो कॉन्सेप्ट ही उल्टा है। खत्म होने के बाद 2-3-4 जितने भी दिन आप भूखे मरें। फिर जब आप उनसे मिल पाओ, तो वो आपको बताएंगी, कि ये तो खत्म हो गया है।

अरे अनपढ़, मूढ़, गंवार.. ये  अक्ल नहीं है कि एक चिट्ठी छोड़ जाओ. ताकि मैं अगले दिन ऑफिस से लाते वक्त उसे ले आऊं। खुद पढ़ना लिखना नहीं आता तो किसी और से लिखवा लो। जिससे रोज़ पढ़वाती हो, उसी से लिखवा लो। पर नहीं। हम तो तीसमारखां हैं… जो समझ में आएगा, करेंगे। तो करो.. हम ही चू.. हैं..

ऊपर ये से और कि हम दिमाग नहीं लगाएंगे…. सब्जी खत्म हुई, तो घर में दही था, बेसन था … कढ़ी नहीं बन सकती थी???? दाल बनाई, वो भी इतनी वाहियात। हद है यार। अब क्या कहें… पता नहीं क्यों रख लिया है काम पर।

दिमाग बेहद खराब है, औऱ कोई सुनने वाला भी नहीं है….

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