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चंद सवाल… एक बार फिर

दिसम्बर 27, 2008

खुश होने की कोई वजह नहीं है, शायद इसलिए भी अच्छा नहीं लग रहा। पर मेरे हिसाब से बुरा लगने के पीछे वजह एक बार फिर से वही है।

क्या सही है? और क्या गलत। 

क्या मेरे कुछ कहने पर सबसे पहला रिएक्शन यही होना चाहिए, कि तुम तो गलत बोल रहे हो, औऱ इसलिए तुम्हारी बात सुनी नहीं जानी चाहिए? फिर विचार की कोई गुंजाइश ना छोड़ते हुए, ये स्थिती पैदा कर दी जाती है, कि चैन से सोना है, तो मान जाइये। और फिर एक बार, घर की शांति को बनाए रखने के लिए मुंह बंद करना ही सबसे अच्छा विकल्प साबित होता है। 

एक दोस्त ने बुलाया था अपने घर। ऑफिस में मेरे साथ काम करती है। वो एंकर है, और मैं उसके शो का प्रोड्यूसर। एक ही उम्र के हैं हम। उसका पति रेडियो में काम करता है। अच्छी दोस्त है मेरी। मेरे घर के पास उसने अपना घर खरीदा है, काफी दिन हुए उस बात को। उसने ऐसे ही, एक छोटी सी गेट-टूगेदर रखी है, और हमें भी बुलाया है। 

जैसे ही मैंने ये बात मैडम को बताई, वो तुरंत भड़क गईं। नहीं, मैं नहीं जाउंगी तुम्हारे दोस्तों की पार्टी में। मैं  वहां किसी को नहीं जानती। मैं बोर हो जाउंगी। तुम भी मेरे साथ नहीं बैठते, तुम सबसे बात करते हो, बस मुझ से बात नही करते…. और भी बहुत कुछ।

बड़े भाई आए हुए थे, इसलिए उस मुद्दे को वहीं खत्म कर दिया गया। अगले दिन, सुबह मैं तो दफ्तर चला गया। मेरी दोस्त का फिर से फोन आया।

“अरे तुम लोग शाम को आ रहे हो ना?? ”

“जरूर आना, ये भी आ रहा है और वो भी। देर से आना तो भी चलेगा, मज़ा आएगा।”

अब साफ तौर पर कैसे मना कर देता। तो बात थोड़ी घुमा फिरा दी।

“शायद मैडम का भारत मे ंये आखिरी वीकेंड है, कुछ प्लान हो सकते हैं, मैं कंफर्म कर के बताता हूं।”

एक बार फिर से कोशिश की मैडम से बात करने की, तो फिर वही स्थिती। दुत्कार के साथ, बात खत्म हो गई। मैंने भी चिढ़ कर फोन पटक दिया। 

फिर मैंने सोचा कि ठीक है यार, शादी जिससे की है, उससे निभाना ज्यादा जरूरी है। दोस्तों का क्या है.. अगर अच्छे दोस्त हैं, तो समझ जाएंगे। यही तो फर्क है, दोस्तों और बाकि लोगों में।

यहां, ये कहना भी जरूरी है, कि जिस तरह फिल्मों और टीवी सीलियल्स में कहा जाता है कि बहु घर की बेटी नहीं बन सकती, उसी तरह, एक बात और सच है कि पत्नी सबसे अच्छी दोस्त नहीं बन सकती। वजह सिर्फ एक है, ताली एक हाथ से नहीं बजती। 

घर पहुंचा तो मुझसे कहा गया कि ठीक है, चलते हैं। पर तब तक मैं फ्यूज़ हो चुका था। तय कर लिया कि अब नहीं जाएंगे। हर बार इज़्ज़त खो कर काम करने का कोई मतलब नहीं है। 

कुछ बातें मैं पूरे मामले के बाद, समझ नहीं पाया, और वो ये कि अगर हम किसी को जानते नहीं हैं, तो जानेंगे कैसे?? ये कैसे होगा कि हम सबको, मां के पेट से जान कर आएं, ताकि जब अगली बार मुलाकात है, या पार्टी हो तो उसमें हम सबको जाने। क्योंकि बिना जाने तो हम कहीं जाएंगे नहीं। पर अगर जाएंगे नहीं, तो जानेंगे कैसे?

ऐसे ही, अगर शादी हुई है, तो दूसरे शादीशुदा दोस्तों के घर, अकेले जाने का क्या मतलब हो सकता है?? (अगर नौकरी या किसी दूसरी वजह से एक साथी पास न हो, तो दूसरे के अकेले जाने की बात समझ में आती है।) अगर एक जमावड़ा हो रहा है, तो उसके लिए, ये सुझाव देना, कि मैं नहीं जाती, तुम अकेले चले जाओ… कहां कि समझदारी है?? और उसके बाद, वहां जा कर, सबसे क्या कहो… मेरी बीवी के सिर में दर्द है, और इसलिए वो नहीं आई..?? इस बचकाने सुझाव से सिर्फ इतना ही समझ में आता है कि आप शादीशुदा जीवन के लिए तैयार नहीं थे, और आपकी शादी कर दी गई। आपको किसी ने, ये बताया ही नहीं, कि शादी होने का मतलब क्या है। क्यों लोग अपनी पत्नियों और पतियों के साथ इस तरह की सोशल गैदरिंग में जाते हैं। यहां पर तो सोच कहती है, कि मैं अलग हूं और तुम अलग। 

कई बार मुझे ये भी लगता है कि ये इंडिविडुएलिटी की जो फीलिंग है, ये मेरी ही दी हुई है। मैं ही तो सपोर्ट करता हूं, कि आपका अपना जीवन है, आपकी अपनी सोच है। आप अपने हिसाब से जी सकते हैं। आपको जीना चाहिए। 

पर अब कभी कभी ऐसा लगने लगा है कि इंडिविडुएलिटी की ये फीलिंग मेरी शादीशुदा ज़िंदगी पर भारी पड़ रही है। तुम अलग हो और मैं अलग, ये हर जगह लागू नहीं हो सकता। अगर आप पति पत्नि हैं, तो आपको समाज के नियमों के हिसाब से चलना होगा। ऐसे में जब आपकी दोस्त के घर जाने की बात हो, या फिर मेरे दोस्त के घर, ये कह कर पल्ला नहीं झाड़ा जा सकता कि तुम अकेले चले जाओ। ये समाधन नहीं है। 

मुंबई एक बड़ा और स्वार्थी शहर है। आम तौर पर लोग यहां किसी को अपने घर नहीं बुलाते। ऐसे में कोई सोशल लाइफ का ना होना, कोई बड़ी बात नहीं है। इस सब के बीच भी अगर ऐसे मौके मिलते हैं, तो मेरे हिसाब से सवाल जवाब किए बिना, चले जाने में ही समझदारी है। नहीं तो … अकेला हूं मैं… इस दुनिया में.. कोई साथी है, तो मेरा साया… यही स्थिती हमेशा रहेगी।

खैर … आज की गेट टुगेदर में तो हम नहीं जा रहे… शायद अभी रात को बाहर जा कर खाना खा लें… यही जीवन है..