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Marriage is a failed institution?

मार्च 31, 2009

मैं पहले से ही किसी पर भरोसा नहीं करता था। क्योंकि मैं जानता था कि इंसान की जात ही भरोसे के लायक नहीं है। ये जानकारी मुझे कहां से मिली, ये जज़्बा मेरे अंदर कहां से आया, कह पाना मुश्किल है। पर जब से मैं अपने पैरों पर खड़ा हुआ, तब से, मैं किसी पर भरोसा नहीं करता था। आज एक बार फिर से मेरे भरोसे को मेरे ही एक दोस्त ने पक्का कर दिया।

मेरे अज़ीज दोस्तों में से एक है। साथ काम करते करते ही दोस्त बने। वैसे मेरे लिए दोस्त की परिभाषा थोड़ी अलग है। शादी से पहले श्वेता ने मुझ से पूछा, तुम्हारा सबसे अच्छा दोस्त कौन है, तो जवाब सुन कर काफी हैरान हुई। मैंने कहा, मैं अपना सबसे अच्छा दोस्त हूं। किसी एक व्यक्ति पर हाथ रख कर ये नहीं कहा जा सकता है ये मेरा सबसे अच्छा दोस्त है। स्कूल में कोई और था, कॉलेज में कोई और, दिल्ली में कोई और, मुंबई में कोई और। आज भी, किसी एक व्यक्ति के लिए पूरे भरोसे के साथ ये नहीं कह सकता कि वो मेरा सबसे अच्छा दोस्त है। तुम कोशिश करो, शायद तुम पर वो भरोसा बने। 

बीते 5 सालों में तो नहीं बन पाया है। 

खैर, बात मेरे दोस्त की हो रही थी। शायद उसकी शादी टूट जाए। हां, थोड़ी हैरानी और दुखी करने वाली खबर है, पर सच भी है। जिससे शादी की, अब उसका मोहभंग हो गया है। हां, सही पढ़ा, मोहभंग लड़के का नहीं, लड़की का हो गया है। उसे लगता है कि शादी एक जबरदस्ती है। इतना ही नहीं, मेरे दोस्त पर उस लड़की का भरोसा भी नहीं रहा है। भरोसा…एक बार फिर से, यही सबसे अहम भूमिका में है। जितना भरोसा ज्यादा, उतनी मुश्किल ज्यादा। 

लड़की को लग रहा है कि वो एक कमरे में बंद है। शादी के कमरे में। उस कमरे में खिड़की है, दरवाजा है, ठंडी हवा है, सुख साधन हैं, बाहर आने जाने की मनाही नहीं है, जब मन आए जाए, जब मन आए वापस आए, और इतना ही नहीं, उस कमरे में दूसरों के लिए भी जगह है (आम तौर पर शादियों में पति पत्नि के बीच कोई नहीं होता। लेकिन यहां ऐसा कोई बंधन नहीं है।) पर फिर भी…. फिर भी वो एक कमरा है, जिसमें चार दीवारें हैं, एक छत है, तो खुली हवा में वो बात नहीं है। इतना सब होने के बाद भी, लड़की को कमरे में घुटन हो रही है।

 

और अब उसने तय किया है कि वे इस कमरे से बाहर निकलेगी, और हमेशा बाहर ही रहेगी। खुली हवा में। नीले आकाश के नीचे। जहां उस पर कोई बंधन ना हो। जहां, कोई सवाल करने वाला ना हो, और जहां, उसे किसी को जवाब ना देने हों। 

पर इस सब के बीच, लड़का परेशान है। सवाल तो उसने भी कभी नहीं पूछे, जवाब तो उसने भी कभी नहीं मांगे। वो तो लड़की की हर खुशी में खुश था। अब अचानक से क्या हुआ। 

असल में लड़की ने लड़के को ये भी कह दिया, कि भई अब मुझे तुम्हारी ज़रूरत महसूस नहीं होती। तुम हो या नहीं हो, मुझे फर्क नहीं पड़ता, और इसलिए मुझे लगता है कि अब हमें अलग हो जाना चाहिए। शायद हमारी राहें अलग अलग हैं। शादी के 2 साल बाद, शायद लड़का ये सुनने के लिए तैयार नहीं था। 

लेकिन एक बात और, चूंकि कमरे का दरवाजा खुला है, औऱ कोई भी कमरे में आ सकता है, ये आपके ऊपर निर्भर है कि आप किसे और कितना अंदर आने देते हैं, दोनों ने एक दूसरे पर भरोसा जताया है। लेकिन राहें अलग होने की वजह से लड़का, कुछ भटका, और मानवीय जरूरतों के आगे, उसने एक दिन घुटने टेक दिए। उसने वो कर दिया, जो शायद शादीशुदा ज़िंदगी में ना किया जाए, तो अच्छा है। खास तौर पर भारत में, भारतीय मानसिकता वाले घरों में तो ना ही किया जाए तो ठीक है। और उसके इस कदम ने, शायद लड़की को तोड़ कर रख दिया। अब लड़की घर छोड़ने वाली है।

लड़के का तर्क है कि वो मजबूर था, हालात कुछ ऐसे थे कि वो कुछ नहीं कर पाया, औऱ बह गया। पर आज बात कर के पता चला कि ये स्थिती सिर्फ लड़के की नहीं है। लड़की भी पहले ये गलतियां कर चुकी है।

और लड़के ने नज़रअंदाज कर दी??? कुछ समझ नहीं आई बात। क्या वो भी इंतज़ार कर रहा था, कि कभी मुझे भी मौका मिले, तो मैं भी कुछ कर गुजर जाउं?? शायद ही विचार, इस परिस्थिती के लिए ज़िम्मेदार है। पता नहीं ये सही है या नहीं। 

फिलहाल स्थिती ये है कि दोनों के बीच बातचीत बंद है, और इसलिए, अब हमारे मित्र ने भी घर छोड़ने का फैसला  कर लिया है, और वो आज हमारे घर रहने आने वाले हैं। अपना, खुद का, खरीदा हुआ घर छोड़ कर, हमारे किराए के गरीब खाने पर।

लड़के का कहना है कि लड़की सब कुछ अपने मन के हिसाब से कर रही है, और शायद उसे एक झटके की ज़रूरत है। लड़का, अचानक से घर छोड़ कर चला जाएगा, तो वो झटका, लड़की को सोचने पर मजबूर करेगा, और फिर शायद बात बन जाए। 

पर क्या लड़की बात बनाने के लिए तैयार है? इस सवाल का जवाब किसी के पास नहीं है। क्योंकि अब वो क्या सोच रही है, ये कह पाना मुश्किल है। कल ही मेरी और उसकी बात हुई, तो उसने मुझ से कहा,

“यार, तुम्हें नहीं लगता कि marrige is a failed institution??”

मैं थोड़ा सकपकाया, फिर संभल कर कहा,

“नहीं, मुझे नहीं लगता। शादी के बारे में मेरे विचार थोड़े अलग हैं। ”

“पर शादी के 3 साल बाद, आज भी तुम अकेले रह रहे हो, तुम्हें जरूरत क्या है अपने साथी की? क्यों खुद को बांधे हुए हो? या फिर मेरा ही एग्जाम्पल ले लो, क्या तुम्हें लगता है कि मुझे और तुम्हारे दोस्त को जरूरत थी शादी करने की? मुझे नहीं लगता।”

“पर मैंने इतने शॉर्ट टर्म मुनाफे के लिए शादी नहीं की है। मेरा एक परिवार होगा, जब वक्त आएगा। तब तक मैं, अपनी बैचलर लाइफ जी रहा हूं, औऱ मेरी पत्नि भी। मुझे नहीं लगता कि शादी कर के हमने कोई गलती की है। और फिर ज़रूरतों की जहां तक बात है, अगर हम प्यार में होते, और शादी ना करते, तो भी जो नियम अभी पाल रहे हैं, शायद तब भी पाल रहे होते। क्योंकि हमारा कमिटमेंट है। और हां, परिवार तो मेरा भी होगा, आज नहीं पांच साल बाद होगा, पर मैं उसके लिए इंतजार करने को तैयार हूं, और साथ ही उस परिवार की नींव अभी पड़ रही है, एक दूसरे से दूर रह कर।”

जाहिर है, वो मेरी बात से सहमत तो नहीं थी, पर फिर भी वो मुस्कुराई, और फिर चली गई। चर्चा का कोई निकाल नहीं निकला। 

मुझे सबसे ज्यादा कोफ्त जिस बात से हो रही है, वो ये है कि जब दोनों में प्यार हुआ था, और शादी का प्लान बना, क्या तब ये सब बातें नहीं सोची गईं?? तब क्यों सब कुछ अच्छा था? आदमी हो या औरत, दिल के क्यों प्यार करते हैं? और अगर कर ही रहे हैं, तो उसे दिमाग से परखते क्यों नहीॆं? ये सोच कर शादी क्यों नहीं करते कि उम्र भर साथ रहेंगे? अमेरिका के रास्ते पर क्यों चलना चाहते हैं, कि एक उम्र में चार पांच शादियां नहीं की, तो क्या पाया? क्या अमेरिकी लोग, इस परंपरा के साथ खुश हैं? जवाब होगा, नहीं। वो भारत और चीन का रुख कर रहे हैं, क्योंकि यहां पर संयुक्त परिवार होते हैं। यहां से सीखने को बहुत कुछ है। और हम….. हम लोग अमेरिका की तरफ जा रहे हैं। 

No, I don’t think marrige is a failed institution. Not till now at least.

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बॉस कथा – I

मार्च 27, 2009

कई बार ये जरूरी नहीं है कि कोई नतीजा निकले। चर्चा होती रहेगी, समय निकलता जाएगा, फैसला नहीं होगा। तो ऐसे में क्या करना सही होगा? क्या इंतजार का रास्ता अच्छा है? या फिर सामने वाले पर भरोसा कर के, खुद शांत बैठना समझदारी है? कुछ सवाल ऐसे हैं, शायद जिनके जवाब नहीं मिलते…कभी..!

वही घिसी पिटी बात कहने का अर्थ दिखाई नहीं देता। पर मुद्दा तो यही है कि हो वही रहा है, जो घिसा पिटा है। और शायद इसीलिए, अब वक्त आ गया है कि कुछ किया जाए। यही सोच कर इस बार की मीटिंग में मुंह खोल ही दिया। 

कोई सवाल न करे, तो ठीक है। जो हो रहा है होने दिया जाए, वो ठीक है, और जो कुछ मैं कह रहा हूं, वो ठीक है। ये कुछ ऐसे मुद्दे हैं, जिन्हें ले कर हमारे बॉस खुद में खुश रहते हैं। मुझे ये सब लिखते हुए भी ओछा लग रहा है, कि मैं अपने बॉस के बारे में ब्लॉग लिख रहा हूं, मेरे जीवन में कुछ नया, अच्छा नहीं है, जिसे में लिख सकूं, कुछ क्रीएटिव कर सकूं। पर शायद, ये वक्त ऐसा है, जो शायद हर किसी की लाइफ में आता होगा। जब आदमी आगे बढ़ने की स्ट्रगल में फंसा रहता होगा, और सिर्फ और सिर्फ अपने काम के बारे में सोचता होगा, और जाहिर तौर पर हर आम आदमी की तरह, अपने बॉस को कोसता होगा।

खैर, मुद्दा शुरू हुआ, एक मीटिंग से। 10 दिन पहले एक मीटिंग हुई, कॉम्पिटिशन और हमारे चैनल के  TRP चार्ट दिखाए गए, औऱ साफ कर दिया गया, कि हमारा चैनल, हमारी टीम की वजह से नंबर वन नहीं है। वो तो शाम की टीम है, जो कुछ कमाल कर रही है, और इसलिए, मार्केट में हमारी कुछ इज़्ज़त है, नहीं तो हमारे कपड़े उतरने में ज़रा भी वक्त ना लगे। हम से सुझाव मांगे गए, और हर बार की तरह बॉल हमारे कोर्ट में डाल कर आइडिया लेकर आने को कहा गया। 

जैसे कि हर मीटिंग के बाद होता है, बाहर निकल कर लोगों ने अपने चैनल को गाली दी, औऱ साथ ही अपने मन में पल रहे उस कीड़े को फिर से चारा डाला, जो रोज़ तुमसे ये कहता है कि ये आदमी, जो तुम्हें अभी ज्ञान दे रहा था, वो चू… है। ज़ाहिर है, आगे कुछ नहीं हुआ। 

10 दिन बाद एक दिन बॉस का मेल आया। मैंने 10 दिन पहले कुछ सुझाव मांगे थे, आपमे से कोई मेरे पास नहीं आया। आज शाम को मैं सब से मिलना चाहता हूं, अलग अलग। फिर शाम को एक मेल आया कि अपने सुझाव लिख कर ले जाने हैं। जनता हरकत में आई, किसी ने 10 मिनट, किसी ने 15 मिनट कॉम्पिटिशन को देखा और अपने प्वाइंट्स बना लिए। कुछ ने तो देखा तक नहीं, अपने ही मन से अपने चैनल को बचाने के चार तरीके कागज़ पर लिखे, और जा कर बॉस की क्लास में हाजिरी दे आए।

बॉस ने भी प्यार से पूछा कि क्या प्लान है? 

जी, ये प्लान है?

ये कैसे होगा?

जी ये ऐसे होगा?

ये कब से होगा?

जी कल से शुरू कर देते हैं, 2 हफ्ते में फर्क दिखेगा। 

अच्छा ठीक है जी, जै राम जी की। 

मोटे तौर पर सभी से यही बात हुई। हमारा नंबर आया तो हमने ये होमवर्क करने से मना कर दिया। उन्होंने कहा कि मैं बिना कागज के बात नहीं करुंगा। मैंने साफ कहा कि मैंने कोई चैनल नहीं देखा है, और इसलिए मैं कुछ नहीं लिख सकता। उन्होंने कहा कि चैनल देखने को किसने कहा, जो आइडिया हो, वो बता दो। मैंने कहा मेरे पास कोई आइडिया नहीं है, मैंने कुछ नहीं सोचा, मेरे पास टाइम नहीं है।

बस, ये सुनना था कि भड़क उठे श्रीमान।

क्या ये काम जरूरी नहीं है। 

हां, है। 

तो फिर इसके लिए समय क्यों नहीं है। 

मैं डेली रुटीन में फंसा हूं। मैं पीसीआर के अंदर बाहर ही करता रहता हूं, इसलिए टाइम नहीं है। 

जब कोई जरूरी काम होता है तो क्या छुट्टी नहीं लेते हो। 

हां लेता हूं। 
तब डेली रुटीन का क्या होता है।

तो आप कह रहे हैं कि मैं शो छोड़ कर ये सुझाव लिखता रहता, और आपके पास आता और सुझाव देता।

मैं कह रहा हूं कि ये काम ज़रूरी है, तो इसके लिए समय निकालना चाहिए था। ये मैं कैसे मान लूं कि 10 दिन में तुम्हें समय ही नहीं मिला।

देखिए भड़क कर तो बात बनेगी नहीं। अपसेट मत होइये, मैं यहां बात करने आया हूं, और ऐसे बात नहीं हो सकती।

तुम कहना क्या चाहते हो।

मैं ये कहना चाहता हूं कि इस समस्या का ये समाधान नहीं है। पिछली कई मीटिंग्स में ये चर्चा हो चुकी है, और बात कही जा चुकी है, कि एंकर को सही सवाल पूछने हैं, रिसर्चर को सही रिसर्च देनी है। प्रोड्यूसर को सही ग्राफिक्स दिखाने हैं। कंटेंट पर सब मिल कर काम करेंगे। अब मुझ से क्या चाहते हैं? यही सब फिर से लिख कर दे दूं? तो दे देता हूं। पर मुझे नहीं लगता कि इससे हम कहीं पहुंचने वाले हैं। जो लोग आपके पास कागज़ पर सुझाव लिख कर लाए हैं, वो बदलाव के लिए कितना सीरियस हैं, ये आप और मैं दोनों जानते हैं। शायद आप मुझ से बेहतर जानते हैं। पिछले 10 मिनट में ये कागज़ बनाए गए हैं। जो लिखा गया है, वो पिछले 10 मिनट में पकाया गया है। कोई सोच विचार नहीं किया गया। वजह क्या है?  सिर्फ यही, कि बस कुछ दे दिया जाए, ताकि बेकार की चर्चा में न फंसे, समय खराब न हो, टाइम से घर चले जाएं। बस। अगर सोचा होता, तो अब तक कुछ किया होता।

तो तुमने सोचा है, क्या सोचा है?

मुझे लगता है कि इस पूरी परेशानी से निपटने का जो अप्रोच है, वो ही गलत है। हमें किसी और अप्रोच से काम करना होगा। पता नहीं कितनी बार हम मीटिंग कर चुके हैं, पता नहीं कितनी बार, एक दूसरे को सुझाव दे चुके हैं, पता नहीं कितनी बार हम एक वर्किंग, या वर्केबल प्लान बना चुके हैं, पर क्या हुआ?? कुछ नहीं। क्योंकि मैं करना ही नहीं चाहता तो आप मुझसे क्या करवा लेंगे भाई? आप के बस की नहीं है। मेरे मन में श्रद्धा नहीं है करने की, तो कोई और कैसे करवा लेगा मुझसे काम। परेशानी ये है सर कि मैं चेस नहीं खेल रहा, क्रिकेट खेल रहा हूं। अगर मैं सेंचुरी बना भी लूं, और मेरे बॉलर्स विेकेट ना ले पाएं, या बाकि बल्लेबाज हेल्प ही ना कर पाएं, तो मैं अकेला क्या कर लूंगा। हम हर बार अपने कोच के पास आएंगे औऱ एक स्ट्रैटेजी बनाएंगे। पर जब हम मीटिंग से बाहर निकलेगे, तो मेरा अपना एक एजेंडा होगा, अपनी एक स्ट्रैटेजी होगी, औऱ फिर वही होगा, जो होता आ रहा है। इसलिए कुछ नहीं होगा। 

बॉस फिर भड़क गए।

कोच पर भरोसा है कि नहीं, जो वो कर रहा है उसमें विज़न दिख रहा है कि नहीं? मैं काफी कुछ कर सकता हूं, पर मैं सही समय का इंतज़ार कर रहा हूं। और कोई भी कदम उठाने से पहले कई फैक्टर्स हो सकते हैं। कभी बड़े बॉस का फैक्टर होगा, कभी कंपनी के CEO का फैक्टर होगा, कभी किसी व्यक्ति के घर में कोई भयानक विपदा आन पड़ी हो सकती है, वो फैक्टर हो सकता है। बहुत कुछ हो सकता है।

और दूसरी बात, मुझे पता कैसे चलेगा कि कोई गलत कर रहा है या नहीं? जब 10 दिन पहले मैंने तुमसे कहा कि मुझे सुझाव दो, तब तुमने ये सब क्यों नहीं बताया? क्यों हर बार मुझे तुम्हें बुलाना पड़ता है, और फिर तुम एक एक कर के ये सब बातें सामने रखते हो। उस दिन ही कहना चाहिए था। 

मैने कहा

मॉरली, मुझे ये सही नहीं लगता कि रोज़ रोज़ आपके पास आऊं और आपको कहूं कि फलां आदमी ने ये किया, और फलां, ने ये नहीं किया। उससे मुझे ये परेशानी है, और उसको अक्ल नहीं है। ये चुगली करने के बराबर है, और मैं ये नहीं करूंगा।

तो तुमने भी तो एक स्टैंड ले लिया है। तुम्हारी भी अपनी स्ट्रैटेजी है। तुम में और दूसरे में क्या फर्क रह गया फिर? तुमने डिसाइड कर लिया, कि मॉरली तुम ये नहीं करोगे, तो तुम आज मेरे सामने शिकायत भी नहीं करोगे। खुद करो मैनेज।

वो तो मैं कर ही रहा हूं, मैं पिछले कई दिनों से दूसरों की जगह मेकअप कर रहा हूं. अगर सुबह साढ़े 10 बजे एक डिस्कशन है, और 10.20 तक मेरे पर उस चर्चा के साथ चलाने के लिए ग्राफिक्स नहीं हैं, तो मैं कहीं से कोई फुटेज ला कर चैनल पर कुछ नया करने की कोशिश करता हूं। अगर मुझे चर्चा के प्वाइंट्स नहीं मिलते, तो मेरे एंकर खुद कुछ नही करते, मैं उन्हें बताता हूं, कि इस डिस्कशन को कहां ले जाना है, और कैसे बात करनी है। मैं तो कर ही रहा हूं, और आगे भी करता रहूंगा। मुद्दा ये है कि कब तक करता रहूंगा? कोई तो लिमिट होगी?

मैं भी किसी वजह से कोई कदम नहीं उठा रहा हूं। पर मुझे तु्म्हारा पेसिमिज़म पसंद नहीं आया। और जिस तरह से तुमने बात को रखा, वो पसंद नहीं आया।

मैंने कहा, लोग यहां पर सिर्फ आपसे ऑर्डर लेने को तैयार हैं। और किसी की बात मैं क्यों सुनूं जब मैं सीधे बॉ से डील कर सकता हूं। तो मैं वहीं जाउंगा। पीसीआर में चिंधी से लोग, मुझे समझाते हैं कि ये ग्राफिक लूंगा और वो नहीं चलाउंगा। अरे, तुम हो कौन??  टेक्निकल आदमी हो टेक्निकल की तरह ा बात करो। कंटेंट पर बात करनी है तो मैं करूंगा। तो आपके नाम की धमकी दी जाती है।

मैं जब पीसीआर मैं बैठता हूं, और तुम जानते हो कि मैं बहुत कम बैठता हूं, तो मैं कंट्रोल में होता हूं।

बड़ी खुशी की बात है, पर वजह जानते हैं कि आप कंट्रोल में क्यों हैं? क्यों कि सामने वाला सिर्फ और सिर्फ आपके ऑर्डर्स लेने को तैयार है।  और किसी से नहीं। और लठैती करनी तो मुझे आती नही। साफ बात है।

 नहीं , तुम बहुत पैसिमिस्टिक हो। तुमने पहले ही कह दिया कि ये तरीका काम नहीं करेगा।

हां नहीं करेगा। आप मुझे एक प्लान दे दीजिए, मैं उसे फोलो कर लूंगा। क्योंकि बरसों से मैं यही करता आया हूं, आगे भी यही करुंगा। अपना दिमाग लगाने के लिए मत कहिए। मैं फिर से कहुंगा कि इस परेशानी से निपटने का ये अप्रोच गलत है, और मैं होमवर्क नहीं करूंगा। मेरे करियर के साथ खिलवाड़ नहीं कर सकता। इस टीम के साथ रह कर, मेरा करियर खराब हो रहा है। वो मैं नहीं चाहता। 

 

खैर, ये चर्चा और भी चली। कई और मुद्दे हैं, जो मैं लिख नहीं पाया। पर मोटे तौर पर, इसी के आसपास हुई। एक बार फिर से इस चर्चा से कोई निदान नहीं निकला। कोई फायदा नहीं हुआ। हम कहीं नहीं पहुंचे। और चर्चा खत्म हो गई।

एक बार फिर से मैं निराश हो कर घर वापस आ गया।

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चंद सवाल… एक बार फिर

दिसम्बर 27, 2008

खुश होने की कोई वजह नहीं है, शायद इसलिए भी अच्छा नहीं लग रहा। पर मेरे हिसाब से बुरा लगने के पीछे वजह एक बार फिर से वही है।

क्या सही है? और क्या गलत। 

क्या मेरे कुछ कहने पर सबसे पहला रिएक्शन यही होना चाहिए, कि तुम तो गलत बोल रहे हो, औऱ इसलिए तुम्हारी बात सुनी नहीं जानी चाहिए? फिर विचार की कोई गुंजाइश ना छोड़ते हुए, ये स्थिती पैदा कर दी जाती है, कि चैन से सोना है, तो मान जाइये। और फिर एक बार, घर की शांति को बनाए रखने के लिए मुंह बंद करना ही सबसे अच्छा विकल्प साबित होता है। 

एक दोस्त ने बुलाया था अपने घर। ऑफिस में मेरे साथ काम करती है। वो एंकर है, और मैं उसके शो का प्रोड्यूसर। एक ही उम्र के हैं हम। उसका पति रेडियो में काम करता है। अच्छी दोस्त है मेरी। मेरे घर के पास उसने अपना घर खरीदा है, काफी दिन हुए उस बात को। उसने ऐसे ही, एक छोटी सी गेट-टूगेदर रखी है, और हमें भी बुलाया है। 

जैसे ही मैंने ये बात मैडम को बताई, वो तुरंत भड़क गईं। नहीं, मैं नहीं जाउंगी तुम्हारे दोस्तों की पार्टी में। मैं  वहां किसी को नहीं जानती। मैं बोर हो जाउंगी। तुम भी मेरे साथ नहीं बैठते, तुम सबसे बात करते हो, बस मुझ से बात नही करते…. और भी बहुत कुछ।

बड़े भाई आए हुए थे, इसलिए उस मुद्दे को वहीं खत्म कर दिया गया। अगले दिन, सुबह मैं तो दफ्तर चला गया। मेरी दोस्त का फिर से फोन आया।

“अरे तुम लोग शाम को आ रहे हो ना?? ”

“जरूर आना, ये भी आ रहा है और वो भी। देर से आना तो भी चलेगा, मज़ा आएगा।”

अब साफ तौर पर कैसे मना कर देता। तो बात थोड़ी घुमा फिरा दी।

“शायद मैडम का भारत मे ंये आखिरी वीकेंड है, कुछ प्लान हो सकते हैं, मैं कंफर्म कर के बताता हूं।”

एक बार फिर से कोशिश की मैडम से बात करने की, तो फिर वही स्थिती। दुत्कार के साथ, बात खत्म हो गई। मैंने भी चिढ़ कर फोन पटक दिया। 

फिर मैंने सोचा कि ठीक है यार, शादी जिससे की है, उससे निभाना ज्यादा जरूरी है। दोस्तों का क्या है.. अगर अच्छे दोस्त हैं, तो समझ जाएंगे। यही तो फर्क है, दोस्तों और बाकि लोगों में।

यहां, ये कहना भी जरूरी है, कि जिस तरह फिल्मों और टीवी सीलियल्स में कहा जाता है कि बहु घर की बेटी नहीं बन सकती, उसी तरह, एक बात और सच है कि पत्नी सबसे अच्छी दोस्त नहीं बन सकती। वजह सिर्फ एक है, ताली एक हाथ से नहीं बजती। 

घर पहुंचा तो मुझसे कहा गया कि ठीक है, चलते हैं। पर तब तक मैं फ्यूज़ हो चुका था। तय कर लिया कि अब नहीं जाएंगे। हर बार इज़्ज़त खो कर काम करने का कोई मतलब नहीं है। 

कुछ बातें मैं पूरे मामले के बाद, समझ नहीं पाया, और वो ये कि अगर हम किसी को जानते नहीं हैं, तो जानेंगे कैसे?? ये कैसे होगा कि हम सबको, मां के पेट से जान कर आएं, ताकि जब अगली बार मुलाकात है, या पार्टी हो तो उसमें हम सबको जाने। क्योंकि बिना जाने तो हम कहीं जाएंगे नहीं। पर अगर जाएंगे नहीं, तो जानेंगे कैसे?

ऐसे ही, अगर शादी हुई है, तो दूसरे शादीशुदा दोस्तों के घर, अकेले जाने का क्या मतलब हो सकता है?? (अगर नौकरी या किसी दूसरी वजह से एक साथी पास न हो, तो दूसरे के अकेले जाने की बात समझ में आती है।) अगर एक जमावड़ा हो रहा है, तो उसके लिए, ये सुझाव देना, कि मैं नहीं जाती, तुम अकेले चले जाओ… कहां कि समझदारी है?? और उसके बाद, वहां जा कर, सबसे क्या कहो… मेरी बीवी के सिर में दर्द है, और इसलिए वो नहीं आई..?? इस बचकाने सुझाव से सिर्फ इतना ही समझ में आता है कि आप शादीशुदा जीवन के लिए तैयार नहीं थे, और आपकी शादी कर दी गई। आपको किसी ने, ये बताया ही नहीं, कि शादी होने का मतलब क्या है। क्यों लोग अपनी पत्नियों और पतियों के साथ इस तरह की सोशल गैदरिंग में जाते हैं। यहां पर तो सोच कहती है, कि मैं अलग हूं और तुम अलग। 

कई बार मुझे ये भी लगता है कि ये इंडिविडुएलिटी की जो फीलिंग है, ये मेरी ही दी हुई है। मैं ही तो सपोर्ट करता हूं, कि आपका अपना जीवन है, आपकी अपनी सोच है। आप अपने हिसाब से जी सकते हैं। आपको जीना चाहिए। 

पर अब कभी कभी ऐसा लगने लगा है कि इंडिविडुएलिटी की ये फीलिंग मेरी शादीशुदा ज़िंदगी पर भारी पड़ रही है। तुम अलग हो और मैं अलग, ये हर जगह लागू नहीं हो सकता। अगर आप पति पत्नि हैं, तो आपको समाज के नियमों के हिसाब से चलना होगा। ऐसे में जब आपकी दोस्त के घर जाने की बात हो, या फिर मेरे दोस्त के घर, ये कह कर पल्ला नहीं झाड़ा जा सकता कि तुम अकेले चले जाओ। ये समाधन नहीं है। 

मुंबई एक बड़ा और स्वार्थी शहर है। आम तौर पर लोग यहां किसी को अपने घर नहीं बुलाते। ऐसे में कोई सोशल लाइफ का ना होना, कोई बड़ी बात नहीं है। इस सब के बीच भी अगर ऐसे मौके मिलते हैं, तो मेरे हिसाब से सवाल जवाब किए बिना, चले जाने में ही समझदारी है। नहीं तो … अकेला हूं मैं… इस दुनिया में.. कोई साथी है, तो मेरा साया… यही स्थिती हमेशा रहेगी।

खैर … आज की गेट टुगेदर में तो हम नहीं जा रहे… शायद अभी रात को बाहर जा कर खाना खा लें… यही जीवन है..

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क्योंकि नहीं लिखा है…

अक्टूबर 16, 2008

आज लिखने की वजह क्या है?? कुछ खास नहीं… बस बहुत दिनों से कुछ लिखा नहीं, इसलिए लिखने बैठ गया। किसी एक महान लेखक की व्यथा पढ़ रहा था। याद नहीं कौन.. पर उनका कहना था कि वो नियमित रूप से रोज़ सुबह अपनी टेबल पर बैठ जाया करते थे। मन में कोई विचार हो, या फिर नहीं। कभी कभी तो एक पन्ना भी लिखना उनके लिए दूभर था, पर कभी कभी उसी रौ में वो शाम तक लिखते रहते थे, और कई उपन्यास छाप दिया करते थे।

तो हमने भी सोचा कि ऐसा न हो.. कि लिखने की आदत छूट जाए। इसलिए लिखने बैठ गए।

अब परेशानी ये है कि क्या लिखा जाए… ये तो दस लाख का सवाल है (A Million Dollar question का हिंदी रूपांतर।) चलिए, अपनी बाई को गाली देते हैं। वैसे भी उन्होंने काम ही ऐसा किया है।

ये बताने के बावजूद की मैं दिन में एक बार ही खाना खा पाता हूं… इतना वाहियात खाना बनाने के पीछे का तर्क समझ में नहीं आया। एक दाल-नुमा कोई चीज़ बनाई, जो न तो दाल थी, न ही सब्जी। ऐसा लग रहा था कि पानी को तड़का दे दिया गया है। वो भी ढ़ेर सारे अदरक वाला। दिमाग की बत्ती जलने से पहले ही फ्यूज़ हो गई। इतना गुस्सा आया कि मन किया कि कल से ही बाहर का रास्ता दिखा दूं। पर क्या करें, माता-पिता आने वाले हैं, और फिर श्रीमती जी भी वापस आने वाली हैं। तो इस समय बाई को निकाल बाहर करना ठीक नहीं है।

पर सवाल ये नहीं है। सवाल ये है कि महिलाओं को कोई भी बात सीधे तरीके से समझ में क्यों नहीं आती? ये पहली बार नहीं हुआ, कि मैंने उन्हें समझाया हो, और उन्हें समझ में नहीं आया। अरे कोई चीज़ घर में खत्म हो गई है, तो कब बताओगे सामने वाले को? खत्म होने के बाद, या उससे पहले, कि भाई ये फलां दिन खत्म हो जाएगा, उससे पहले ला दो.. पर नहीं, यहां तो कॉन्सेप्ट ही उल्टा है। खत्म होने के बाद 2-3-4 जितने भी दिन आप भूखे मरें। फिर जब आप उनसे मिल पाओ, तो वो आपको बताएंगी, कि ये तो खत्म हो गया है।

अरे अनपढ़, मूढ़, गंवार.. ये  अक्ल नहीं है कि एक चिट्ठी छोड़ जाओ. ताकि मैं अगले दिन ऑफिस से लाते वक्त उसे ले आऊं। खुद पढ़ना लिखना नहीं आता तो किसी और से लिखवा लो। जिससे रोज़ पढ़वाती हो, उसी से लिखवा लो। पर नहीं। हम तो तीसमारखां हैं… जो समझ में आएगा, करेंगे। तो करो.. हम ही चू.. हैं..

ऊपर ये से और कि हम दिमाग नहीं लगाएंगे…. सब्जी खत्म हुई, तो घर में दही था, बेसन था … कढ़ी नहीं बन सकती थी???? दाल बनाई, वो भी इतनी वाहियात। हद है यार। अब क्या कहें… पता नहीं क्यों रख लिया है काम पर।

दिमाग बेहद खराब है, औऱ कोई सुनने वाला भी नहीं है….

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शादी की नीव… तलाक है???

अक्टूबर 12, 2008

शराब और सिगरेट सबसे बुरी चीज़ है…. उसे छोड़ दो…

ठीक है, छोड़ दिया… लेकिन अब क्या??? क्या इससे तुम्हारी परेशानी खत्म हो जाएगी??? मुझे नहीं लगता, क्योंकि परेशानी की जड़ वो है ही नहीं…

ये क्यों ज़रूरी है कि आपको दूसरे के हिसाब से जीना पड़े??? अगर दोनों में से किसी को कोई परेशानी हुई, तो वो दूसरे को बताए या नही?? ये एक बड़ा सवाल है। सामने वाले के हिसाब से, आपकी परेशानी बहुत छोटी साबित हो सकती है। और आखिरकार, आप किसी और, यानी किसी तीसरी ही परेशानी से ग्रसित हो सकते हैं।

मसलन, आप बात करने पहुंचे, कि मुझे लगता है कि तुम कुछ ज्यादा की व्यस्त हो। शायद काम में, शायद अकेलेपन में, शायद कहीं और। लेकिन आपको अगर ये समझा दिया जाए कि तुम सेक्सुअल रूप से खुश नहीं हो, इसलिए तुम ऐसी बात कर रहे हो, तो आप क्या सोचेंगे??? मेरे दिमाग में जो पहली बात आई, वो ये थी की, अब चुप हो जाओ। सामने वाला तो किसी और ही धुरी पर है। On a diffrent tangent… As they say.

मतलब, हद है यार, आपने कुछ सोचा, और हुआ कुछ और ही। आप बात करने गए थे कि भई, कुछ परेशानी है। आपको आजकल ये समझ में नहीं आता कि हम क्या कह रहे हैं। शायद आपमें और हममें कुछ कनेक्शन की दिक्कत है। हम और आप आजकल कनेक्टेड नहीं हैं। और ये समझने की बजाय, कि ऐसा क्यों है, आप, सीधे शुरू हो जाएं।

तुम्हें परेशानी क्या है???

तुम मुझसे खुश नहीं हो

तुम नहीं चाहते कि मैं तुम्हारे साथ रहूं..

मैं तुम्हारे हिसाब से सेक्स नहीं करती,

मैं तुम्हें खुश नहीं रखती

मुझे तलाक दे दो…

तलाक… तलाक??? कुछ औऱ नहीं सूझा तो तलाक कह दिया..क्या होता है तलाक?? बताइये… होता क्या है तलाक?? दूर दूर तक इसका मतलब पता है आपको?? क्या आप जानती हैं कि तलाक देना जितना आसान है, उसे निभाना उतना ही मुश्किल। क्या आपने अपने बगल वाले फ्लैट में रहने वाली, अनुराधा को नहीं देखा है?? महज़, 9 महीने शादी शुदा जीवन बिताने के बाद से, पिछले 18 साल से वो अपने मां बाप के साथ रह रही है। एक बच्चे के साथ। जिसके पास बाप नहीं है।

कह दिया तलाक….दे दो.. इतना ही आसान है तलाक देना, तो दे दो… अपने हिसाब से जीते हैं…. और इसलिए ही तो हमने अपने मां-बाप को मौका दिए बिना, एक दूसरे के साथ प्यार में पड़ कर, शादी का फैसला किया था। कि 2 साल बाद ही, हमें तलाक की धमकी मिले।

शर्म से सिर झुक गया मेरा…. इतना ही भरोसा जीत पाया हूं मैं तुम्हारा… सिर्फ सेक्स ही मेरा जीवन है।

इसलिए ही, पिछले एक साल से ज्यादा समय से मैं अकेला रह रहा हूं… और तुम भी, सिर्फ इसलिए ही इतनी कोशिश कर रही हो… कि आखिर में हम अलग हो जाएं… ठीक है। अगर तुम्हें लगता है कि अलग होना ही इलाज है, तो ठीक है… हो जाओ अलग।

और मैं ही बेवकूफ हूं… कि तुम्हें इतनी अच्छी तनख्वाह वाली और साथ ही आराम की ज़िंदगी वाली नौकरी छोड़ने को मना कर रहा हूं… इसलिए ही ना, कि जब हम एक दूसरे को तलाक दे दें, तो तुम परेशानी में न पड़ो। एक लड़के लिए, तलाकशुदा ज़िंदगी जीना आसान होता ही, लड़की के लिए नहीं। पर मैं तुमसे प्यार करता हूं। इसलिए चाहता हूं की, अगर हम अलग हों भी, तो भी तुम्हें परेशानी न हो। एक अकेली लड़की के लिए फाइनेंशियल इंडिपेंडेंस सबसे ज़रूरी है… जो तुम्हें… ऐसी ही एक अच्छी नौकरी कर के मिलेगी।

मुझ से अलग होना ही अगल परेशानी का हल है… तो यही सही।

लेकिन क्या तुमने समझने की कोशिश की है, कि परेशानी क्या है??? परेशानी सिर्फ इतनी है कि अब तुम, ये समझ नहीं पा रही हो, कि मैं क्या कहता हूं। मतलब ये है कि पहले जो भी मैं कहता था, उसके निहितार्थ तुम समझती थी। तुम ये समझ लेती थी, कि मैं क्या कहना चाहता हूं, और मैं साफ साफ नहीं भी कह रहा हूं, तो भी तुम मुझे समझती थी। अब शायद तुम बिज़ी हो। और इसमें कुछ ग़लत नहीं है। पर अगर ऐसा है, तो वो है। उसके लिए हम दोनों को ही कोशिश करनी होगी। कि ये परेशानी ऐसी न रहे।

पर अगर, हम इसे सुलझाना ना चाहें। ये मान लें कि जीवन में कुछ बदलाव नहीं हो सकता, और अब जो ये स्थिती आ गई है, उसके लिए हमें अलग हो जाना चाहिए… तो यही सही।

दिल टूट गया है मेरा। अब मैं समझ नहीं पा रहा हूं, कि मैं क्या करूं?? शायद जो तुम कहो, वो सब कर देना चाहिए। अपनी कोई लाइफ न हो। जो तुम कह दो, वो कर दिया जाए। तो शायद तुम्हें ऐसा लगे, कि मैं तुमसे अलग नहीं होना चाहता।

क्योंकि….. मैं तुमसे अलग नहीं होना चाहता। पता नहीं मैं कैसे तुम्हें, यकीन दिला पाउंगा….

पर मैं तुमसे प्यार करता हूं….

शिकायतें तो भगवान राम को भी, सीता मां से थीं…. फिर मैं तो इंसान हूं…..

सौमित्र